Friday, January 17, 2014

ज़िंदगी सब पे क्यूं नहीं आती...

Inspired by a 'Triveni' written by Gulzar Saab dedicated to those who just decide to commit suicide… There's more to life than just a relationship, a mishap or even the biggest tragedy. Live on…











मेरा झूठ जब पकड़ा गया था  
तब मज़ाक में कहा था तुझे 
इतनी सी बात पर मर जाओ
तुमने हंस कर टाल दिया मुझे    

मुझे लगा बात अब टल गयी है 
भूल गया था तेरी आँखों का दर्द 
सोचा के बला टल गयी एक और
क्या एक जैसे ही होते हैं सब मर्द 

छोटी सी ही बात थी मेरे लिये तो 
तुम ने उसे क्यों इतना बड़ा किया
मेरी क्या गलती है ये तुम बताओ
कैसे तुमने इतना बड़ा फैसला लिया 

मर जाने को तो ऐसे ही कहा था बस
तेरे बिना अब बता तो कैसे जियूंगा मैं
तेरी सांसों में खुद को पाया है मैने 
तेरे बिना अधूरे से भी बहुत कम हूँ मैं  

मैं भी मर ही जाता हूँ तेरे बिना आज 
दे कर तो देखती मुझे आखरी आवाज़ 
माफी मांग लेता तुझसे गिड़गिड़ाते हुए 
बता देता तुझे मैं अपना हर एक राज़ 

साली ज़िंदगी सब पे क्यूं नहीं आती
मैने तो बस ज़िंदगी मांगी थी तेरी थोड़ी 
फिर जाने ऐसा क्या गुनाह हुआ मुझसे 
एक पल मे क्यों मेरी ये बांह छोड़ी…

मिलोगी फिर तब बताना मुझको ये 
क्यों इतना आसान था ऐसे मर जाना 
क्यों भूल गयी इतनी आसानी से ये
मुझसा था तेरा एक पागल दीवाना  

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